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विवेकियों ने सीखी पशुओं से प्रेम की भाषा।

रिपोर्ट , पिंजौर : विपुल मंगला
सेंट विवेकानंद मिलेनियम स्कूल एचएमटी टाउनशिप पिंजौर ने पीडू  के सदस्यों के सहयोग से एक कार्यशाला आयोजित की है । जो जूनियर से हाई स्कूल तक के छात्रों को कुत्ते के काटने, रेबीज से बचने के तरीके सहित पशु कल्याण और देखभाल पर मानवीय शिक्षा प्रदान करती है।
यह कार्यक्रम जानवरों के प्रति दया और साथी मनुष्यों के प्रति दया से संबंधित था । जिसका  कुल मिलाकर वांछित प्रभाव दयालु, मानवीय, जागरूक और अधिक सहिष्णु नागरिकों का निर्माण करना है ।
इस कार्यशाला का आयोजन हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति से लड़ने और सबसे पहले सरल झूठ के चक्र के भ्रम को तोड़कर वह करने के लिए किया गया था । जो किसी के दिमाग में सच्चाई का आभास कराता है। दूसरे, समाज में पितृसत्तात्मक संस्कृति के प्रभाव को तोड़ना, जैसेकि हाशिए पर रहना, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी , अधीनता, या एक लिंग पर विश्वास करना , रूढ़िवादिता , जानवरों पर हिंसा।
छात्रों की वास्तविक प्रवृत्ति को जागृत करने के लिए उन्हें डिसोसिएटिव डिस्टैंसिंग को समझाने का प्रयास किया गया। हम हमेशा सड़क पर मवेशियों के घूमने की शिकायत करते हैं । लेकिन मूल बात पर नहीं जा पाते कि ऐसा क्यों होता है। जब तक मवेशी इंसानों की सेवा कर रहे हैं। तब तक उन्हें उपयोगी माना जाता है। लेकिन बाद में उन्हें सड़क पर खुलेआम घूमने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इस संस्कृति में संशोधन की जरूरत है।
उन्होंने आगे समाज से मिथकों के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित किया। जैसा कि हम अपने पूर्वजों से सुनते आए हैं कि दूध और दूध से बने उत्पाद ही हमारे आहार में प्रोटीन प्राप्त करने का एकमात्र तरीका हैं। क्या यह सच है या मिथक और विज्ञापन एजेंसियां भी तरह-तरह के मिथकों को बढ़ावा देकर समाज में आग में घी डालने का काम कर रही हैं। सच तो यह है कि प्रोटीन हमें पौधों से प्राप्त उत्पादों से भी मिल सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने पिल्लों और छात्रों के बीच संपर्क बनाने का प्रयास किया। उन्होंने किसी जानवर से मिलने वाले डर को कम करने के लिए वहां मौजूद सभी लोगों को जानवरों की भाषा और जानवरों के हाव-भाव के बारे में समझाया। ऐसा माना जाता है कि विनाश या किसी को नुकसान पहुंचाने का विचार, डर की जगह से आता है। उन्होंने मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की तकनीकों और प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। उनके द्वारा कुत्तों से मित्रता कैसे की जाए। इसके लिए कुछ तकनीकें बताई जा रही थीं ।जैसे अगर किसी को कुत्ते से डर लगता है तो उसे सीधा खड़ा होना चाहिए और हाथों को क्रॉस करके दूसरी ओर देखना चाहिए। मित्रवत होने के लिए बस करीब जाएं, कुत्ते को आपकी गंध सूंघने दें और उसके सिर पर थपथपाएं। ये संसाधन व्यक्ति द्वारा सुझाई गई कुछ तकनीकें थीं। यह छात्रों के लिए काफी जानकारीपूर्ण और सीखने वाला अनुभव रहा। प्रधानाचार्य डॉ. पीयूष पुंज ने कहा कि इस प्रकार की कार्यशाला समय की मांग है। युवा पीढ़ी को उन संस्कृतियों और मिथकों से बाहर आने के लिए अपनी विचार प्रक्रिया में कुछ संशोधन करने की आवश्यकता है जो आज प्रासंगिक नहीं हैं। यह काफी समृद्ध अनुभव था।

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